वांछित मन्त्र चुनें

ता मा॒ता वि॒श्ववे॑दसासु॒र्या॑य॒ प्रम॑हसा । म॒ही ज॑जा॒नादि॑तिॠ॒ताव॑री ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tā mātā viśvavedasāsuryāya pramahasā | mahī jajānāditir ṛtāvarī ||

पद पाठ

ता । मा॒ता । वि॒श्वऽवे॑दसा । अ॒सु॒र्या॑य । प्रऽम॑हसा । म॒ही । ज॒जा॒न॒ । अदि॑तिः । ऋ॒तऽव॑री ॥ ८.२५.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:3


बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पुनः उन दोनों का ही वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः - (ता) वैसे पुत्रों को (मही) महती (ऋतावरी) सत्यवती (अदितिः) माता (जजान) उत्पन्न करती है, जो पुत्र (विश्ववेदसा) सर्व प्रकार ज्ञानसम्पन्न होते (प्र+महसा) बड़े तेजस्वी और (असुर्य्याय) बल दिखलाने के लिये सर्वदा उद्यत रहते हैं ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो संसार में विख्यात और विद्वान् हों, वैसे कोटियों में दो चार होते हैं। किन्तु प्रारम्भ से यदि बालक-बालिका सुशिक्षित हों, तो वे वैसे हो सकते हैं ॥३॥
बार पढ़ा गया

शिव शंकर शर्मा

पुनस्तौ वर्ण्येते।

पदार्थान्वयभाषाः - ता=तादृशौ पुत्रौ। मही=महती। ऋतावरी=सत्यवती। अदितिः=अखण्डनीया माता। जजान=जनयति। पुनः कीदृशौ। विश्ववेदसा=सर्वज्ञानौ। प्रमहसा=प्रकृष्टतेजस्कौ। कस्मै प्रयोजनाय। असुर्य्याय=बलाय=शक्तिप्रदर्शनाय ॥३॥